खंडहर पर कविता

 







चित्र अभिव्यक्ति 

गीत

आ गए तुम सघन वन में।

 बिछ गए बस्ती सघन में ।

धधकती धरती गगन में।

 महकती पुरवाई है ।


नफरतों को तुम मिटा दो,

 अब कली मुस्काई है ।


छा गई दिलो में घन है ।

झूलसते ये मन व तन है ‌

नाग फनियों की गली है ।

पग पग करे ये जतन है।

 घर गली और गांँव सारे ,

 जो पतझड़ बिछ‌ आई है ।


नफरतों को तुम मिटा दो ,

अब कली मुस्काई है ।‌


दीवारे देखो ढहती ,

 जाने क्या बातें कहती। ‌

फसल जहांँ थी हंँसती ।

क्यों अनल है पिरोती।

चंदन की सोंधी खुशबू,

 ले तू जो मुस्काई है ।


नफरतों को तुम मिटा दो,

अब कली मुस्काई हैं ।‌


रचनाकार 

चंद्रकिरणशर्मा भाटापारा

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दिनाँक - 18/01/2021

विषय - *चित्रचिन्तन*

विधा - राधेश्यामी छंद गीत (16 - 16)

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कंकड़ पत्थर जोड़ बनाया ,

        आलीशान महल सुहावना ।

घर बसेरा न रहा अभी वह ,

         एक खंडहर हुआ पुराना ।।


पहरेदारी करता ताला ,

      रक्षक बन कर खड़ा हुआ है ।

जीर्ण हुई दीवारें घर की , 

      फिर भी वह तो अड़ा हुआ है ।

निष्ठावान मनुज से ज्यादा ,

            आता है कर्तव्य निभाना ।

घर बसेरा न रहा अभी वह ,

         एक खंडहर हुआ पुराना ।।


मात पिता के आशीषों से ,

          घर में आती है खुशहाली ।

लेकिन आज वही घर देखो ,

        उनकी कृपा बिना है खाली ।

व्यक्तिवादी सोंच हावी है ,

            संबंधों का नहीं ठिकाना ।

घर बसेरा न रहा अभी वह ,

         एक खंडहर हुआ पुराना ।।


चारदिवारी भले सुसज्जित ,

          पर घर बनता सदा प्रीत से ।

माँ की लोरी देती निदिया ,

          मन आनंदित मधुर गीत से ।

अब वो निदिया लोरी सारी ,

         आज बना बस एक फसाना ।

घर बसेरा न रहा अभी वह ,

            एक खंडहर हुआ पुराना ।।


अर्थ उपार्जन सर्वोपरी अब ,

        स्वार्थ गया है पहुँच चरम पर ।

केवल अपने सुख की चिंता ,

             आज भरोसा नहीं धरम पर ।

स्वार्थ पूर्ति करने को मानव ,

           खोज रहा नित नया बहाना ।

घर बसेरा न रहा अभी वह ,

            एक खंडहर हुआ पुराना ।।

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✍️इन्द्राणी साहू"साँची"✍️

    भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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