चीख़ता वृक्ष //कुन्दन कुंज
चीखता वृक्ष 🌴🌴🌴🌴🌴 अभी मन में उमंग स्फुटित ही हुई थी , कि तभी उधर से इक चीख सुनाई दी।। बचाओं- बचाओं कोई मेरी मदद करो, मेरा अंतस्तल तुरंत विचलित हो उठा।। मन में हजारों सवाल उमड़ने लगे थे , कौन है?कौन चीख़ रहा है बार- बार? मन प्रकाश के वेग से तेज चल रहा था, परंतु मेरे पाँव गतिहीन हो गये थे ।। मैंनें अपने चारों तरफ दबी आंँखों से देखा, किंतु दूर - दूर तक कोई भी नहीं दिखा।। इस बार मेरा शक और भी गहरा हो गया, मानों कोई अदृश्य शक्ति मुझे बुला रही हो। ज्योंही मैंने गति हीन पांँव को गति दी, इस बार एक नहीं सैकड़ों में सुनाई दी। मानों जैसे पांँव तले जमीन खिसक गई, मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया था। और मैं वहीं मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा, जब मेरी आँखें खुली मैं दंग रह गया। मैं किसी अस्पताल के बेड पर नहीं था, बल्कि कटे हुए वृक्षों के तने पर लेटा था।। मुझे नहीं पता किसने मुझे वहाँ लिटाया, लेकिन हजारों कटे हुए वृक्षों को देख ।। मेरी आंँखों से अश्रु अनवरत बह रहा था, इक बेगुनाह अपने दर्द को कह रहा था। इस बार मुझे फिर से इक चीख सुनाई दी, जो बाहर से नहीं बल्कि मेरे अंदर