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सुन्दर दोहे //रोज सुबह पढें

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 * साँची-सुरभि*           *पथिक* शीतल छाया वृक्ष की , देती है आराम । थके पथिक करते यहीं , क्षण भर को विश्राम ।। अनजानी सी राह है , कंटक से भरपूर । जरा संभल कर पाँव रख , पथिक न हो मद चूर ।। पथिक उठाए क्यों चला , पाप गठरिया शीश । भक्ति ज्ञान मन प्रेम हो , तभी मिलेंगे ईश ।। पथरीली सी राह में , पथिक चला अनजान । पहन ज्ञान की पादुका , पंथ बने आसान ।। यह दुनिया पथ एक है , पथिक सभी इंसान । पाषाणी अनुराग में , पाता कष्ट महान ।। भाग दौड़ दिन भर रहा , हुआ पथिक थक चूर । रजनी की विश्रांति से , हुई थकावट दूर ।। मटका धारे शीश में , बलखाती सी नार । चंचल नयन कटार से , करे पथिक पर वार ।। पथिक चले हैं मार्ग पर , ले मंजिल की आस । सच्चे मन से जब करे , तब हो सफल प्रयास ।। पनघट पे प्यासा पथिक , पहुँचा पानी आस । पनिहारिन पूछे पता , कहाँ तुम्हारा वास ।। धरती नभ रवि शशि पवन , सभी पथिक सम जान । चले कर्म पथ नित्य ही , "साँची" सुन यह ज्ञान ।।   *साहू"साँची"*     भाटापारा (छत्तीसगढ़ ) कवि निलय की कविताएँ प्रातः पर सुन्दर कविता