खंडहर पर कविता
चित्र अभिव्यक्ति गीत आ गए तुम सघन वन में। बिछ गए बस्ती सघन में । धधकती धरती गगन में। महकती पुरवाई है । नफरतों को तुम मिटा दो, अब कली मुस्काई है । छा गई दिलो में घन है । झूलसते ये मन व तन है नाग फनियों की गली है । पग पग करे ये जतन है। घर गली और गांँव सारे , जो पतझड़ बिछ आई है । नफरतों को तुम मिटा दो , अब कली मुस्काई है । दीवारे देखो ढहती , जाने क्या बातें कहती। फसल जहांँ थी हंँसती । क्यों अनल है पिरोती। चंदन की सोंधी खुशबू, ले तू जो मुस्काई है । नफरतों को तुम मिटा दो, अब कली मुस्काई हैं । रचनाकार चंद्रकिरणशर्मा भाटापारा ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ दिनाँक - 18/01/2021 विषय - *चित्रचिन्तन* विधा - राधेश्यामी छंद गीत (16 - 16) ********************************* कंकड़ पत्थर जोड़ बनाया , आलीशान महल सुहावना । घर बसेरा न रहा अभी वह , एक खंडहर हुआ पुराना ।। पहरेदारी करता ताला , रक्षक बन कर खड़ा हुआ है । जीर्ण हुई दीवारें घर की , फिर भी वह तो अड़ा हुआ है । निष्ठावान मनुज से ज्यादा , आता है कर्तव्य निभाना । घर बसेरा न रहा अभी वह ,