गीत

 विधा------ कुंडलियाँ

*विषय----- गीत*


मधुरिम गीतों से सदा , घुलता मन माधुर्य ।

सात सुरों की धुन सजे , बजे सुसंगत तुर्य ।।

बजे सुसंगत तुर्य , कर्ण प्रिय अति मनभावन ।

गीत संगीत साज , करे जीवन को पावन ।।

सुनो "धरा" की बात , लगे मत सरगम कृत्रिम ।

मोहे हृदय सुतान , रागिनी छेड़े मधुरिम ।।

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कलकल नदिया धार सी , बहे गीत संगीत ।

मन को आनंदित करे , जैसे हो मनमीत ।।

जैसे हो मनमीत , प्रेम धुन सदा बजाये ।

बजता घुँघरु पाँव , नृत्य कर मन हरषाये ।।

करे "धरा" स्वीकार , निरंतर बहता अविरल ।

रसमय मोहक गीत , बहे नद सम नित कलकल।।

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रचनाकार 

*धरा*

*रायगढ़*







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