लक्ष्मी कुमारी //माँ पर कविता
माँ
मांग लूँ यह मन्नत की,
फिर यही जहाँ मिले।
फिर यही गोद मिले,
लक्ष्मी कुमारी पूर्णिया, बिहार शिक्षिका |
दुनिया ने जब जब रूलाया
तब तब आपने ही हँसना सिखाया
माँ हर पल तेरी आंचल की छाया मिले
दुनिया ने जब जब जख्म़ दिए
माँ ने ही ममता का मरहम लगाया है।
माँ तेरी आँचल में जन्नत मिले
माँ ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया है
गिरकर उठना, उठकर दौड़ना सिखाया ।
हँसना सिखाया जीना सिखाया
माँ आपने मुझे मजबूत बनाया
आपने पहचान बनाना सिखाया
जब भी परेशान हुई दुख के थपेड़ों से
शुकून की प्यारी थपकी माँ से मिली
माँ तेरे जैसा इस जहां में कोई नहीं
तू है तो जन्नत है
तू है तो रहमत है
माँ मैं तेरी ही परछाई हूँ
तेरी रहमत से दुनिया में आई हूँ
मांग लूँ यह मन्नत की।
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