किसान आन्दोलन पर हुए दंगा पर कविता
आवाह्न
उठो ये वतन वालों,
वतन को बचाने।।
सुलग रही है आग,
घर को जलाने।।
बीज ये कैसा? ?
हम ने है बोया।।
नफ़रत के फूलों से,
है माला पिरोया।।
धर्म मजहब में ये,
है कैसा फसाना।।
इक दूजे़ से क्यों??
हम हुए बेगाना ।।
यूँही नहीं हम ने,
पायी है आजादी।
खोये लाखों सपूतों,
तब रूकी बर्बादी।।
भूल गए हैं हम वो,
इक माँ का टुकड़ा।
था खून से लथपथ,
जब दोनों का चेहरा।
आओं साथ मिलकर,
हम होली ईद मनाएं।
प्रेम का सुमन हम,
वतन में खिलाएं।।
कुन्दन कुंज
पूर्णिया, बिहार
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