कवयित्री मुक्ता सिंह //कविता
*संक्षिप्त परिचय*
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नाम :-श्रीमती मुक्ता सिंह
मूल नाम :-श्रीमती मुक्ता सिंह
जन्म तिथि :-4/1/1976
जन्म स्थान :-पलामू
माता का नाम :-श्रीमती विमला सिंह
पिता का नाम :-स्वर्गीय श्री ललन सिंह
पति का नाम :- युवराज गुलाब प्रताप सिंह
शैक्षणिक योग्यता :-मास्टर डिग्री इन हिंदी,
मास कॉम nd जर्नलिज्म
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उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं -
1.
*सब साजिशें हैं*
सब साजिशें हैंवो बारिश की बूंदे
वो मिट्टी की सोंधी सी खुशबू
वो तेरी यादों की बारातें।
सब साजिशें हैं
मुझे यूँ तड़पाने की, तेरे दूर जाने की।
सभी जिम्मेवारियां निभाते हो ईमानदारी से,
सिर्फ मुझे ही भुल जाते हो इन बंधनों में ।
सब साजिशें हैं
तेरे यादों की सौगाते,
जो तुम दे जाते हो हंसते-हंसते
और मैं थाम लेती हूं मुस्करा के ।
दिल मे कसक सी रह जाती है
आसओं के काश पे अटक के ।
सब साजिशें हैं
इन विरह के मौसम के ।
कुछ तुम छोड़ जाते हो अनजान बनके
कुछ मै नही पकड़ पाती शरमा के
ये शर्मो-हया के पर्दे, ये उठ कर झुकी पलकें।
सब साजिशें हैं
तेरे जाने का दर्द और मेरे विरह के ।
जाते जाते भी मुड़कर तेरा मुस्कराना,
जैसे फ़साना गढ़ते हो मेरे दर्दे-दिल का।
और भरे नैनों से हाल बयां करती हूं मैं,
तेरे फ़साने से मिले अपने दिल का।
सब साजिशें हैं
तेरे मेरे इश्के-परवाने का ।
अब तो आसरा है बस आसओं का
जिसके दामन में रख सज़दा किया करते हैं।
और दुआ करते हैं वक्त-ए-रब से
की इंतज्जार की अवधि हो जाये छोटी
और लंबी हो जाये वक्त तेरे दीदार का।
सब साजिशें हैं
तेरे मसरूफ़ियत की कवायदों की
और मेरे आकांक्षाओं की दमन की।
दिल चाहता है खो जाऊं उन वादियों में
जहां मै तेरे पहलुओं में सर रख सो जाऊं।
न हो कोई कायदे-वादे का पहरा
बस तू मेरी आँखों मे खो जाए
और मैं तेरे नैनो के सागर में खो जाऊं।
सब साजिशें हैं
तेरे मेरे प्यार के अफ़साने के विरह के ।
ऐसा नहीं कि तुम नही याद करते मुझे
और ऐसा नहीं कि मैं नही जानती तेरे दिल को,
दोनों जानते हैं एक दूसरे के अगन को।
पर कुछ बन्धन हैं तुम्हारे, कुछ मेरे,
जो बस मौन हो समझाते हैं एक दूसरे को।
सब साजिशें हैं
तेरे मेरे मुहब्बत के जुदाई के।
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2.
'बेरुखियाँ तेरी"
कि हम इंतज्जारे वफ़ा करें
अजीब सी फितरत है ये तेरी,
बेसबब बेवजह नाराजगी तेरी और
अब मेरी नाराजगियां भी
क्योंकि मेरी शिकायतें भी
तेरी बेपरवाहियों से मेरे मन के
अब नैनो के सावन-भादो भी मिजाज़
तेरे मिजाज़ भी हो गए हैं बरसात
कभी बिजली बन डराते हैं कभी
कहते हो नाराज़ नही हो मुझसे
पर मेरे दिल को कैसे समझाऊं मैं,
क्योंकि मेरा दिल तो मोम का है,
मेरी आशाओं ने भी ना मिलनेवाली एक
दरवाजे पे है पतझड़ों का मौसम,
पर आंगन में उम्मीदों की रंगोली सजी है ।
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3.
"वो शहीद"
गलवानघाटी के वो शहीद
तूम तो शहादत की गोद मे सो गए
पर न जाने कितनी उम्मीदें
कितनी आशाएं तोड़ गए।
आज भी वो कच्ची दीवारें
देख रही राह तेरे आने की।
वो मां के अरमान
आशाओं की उड़ाने ले रही।
वो दुल्हन श्रृंगार किये
पर्दे की ओट से दरवाजे को ताक रही।
बहन भी सुनी सुनी आंखों से
अपनी सुनी डोली को देख रही।
भाई भी अब पढ़ाई छोड़
जिम्मेवारियों की चादर ओढेगा।
क्योंकि तुम तो शहादत का तिरंगा
तन पे लपेटे, मन मे देशप्रेम लिये
अपनी मातृभूमि की गोद में
चिरनिंद्रा में उल्लसित सा सो रहे।
गलवानघाटी के वो शहीद
तूम तो शहादत की गोद मे सो गए
पर न जाने कितनी उम्मीदें
कितनी आशाएं तोड़ गए।
पिता भी आसमान को देख रहा
तेरी शहादत से टूट कर भी जुड़ रहा
मन पुलकित तेरी वीरता से
पर ह्रदय सावन भादो सा रो रहा।
अब ना होंगी होली दिवाली
अब हर साल मनेगी
तेरी शहादत की दशहरा।
तूने भी तो चीनी रावण के धोखे सहे
और भारत के पुरुषार्थ बन
दुश्मनों के छक्के छुड़ाए।
गलवानघाटी के वो शहीद
तूम तो शहादत की गोद मे सो गए
पर न जाने कितनी उम्मीदें
कितनी आशाएं तोड़ गए।
पर इस ना उम्मीदी में भी
आशाओं की किरणें बिखेर गए।
दुखों के पहाड़ को
अपनी वीरता की मंजिल दे गए।
जिस दामन में तुम सोये
वो आज फक्र से गर्वित हो गया।
तेरे माता-पिता के गर्व के सामने
हिमालय भी आज बौना हो गया।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳
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