कवि निलय कुमार //कविता

1.

विषय:- निराशा की मनःस्थिति


कविता:- *किंकर्तव्यविमूढ़ हताश* 


निराशाजनक उत्तरों से कभी, जगा नही क़रतीं आशाएं,

आप कह दो भूल जाइए जनाब, हम कैसे भुलाएँ!


जब साध्य ही ना हुआ उपपन्न,

 तो उत्तर तक हम कैसे पहुंच पाएं!


जब कोई विमा ही मालूम न हो,

तो आकृति हम, यूँही कैसे बनाएं!


जब रास्ता दिखे ही ना आगे,

तो कदम हम कैसे बढ़ाएं!


जब ऊंचाई पर कुछ मिलने की थाह ही नही,

तो कैसे इतनी सीढ़ियां चढ़ जाएँ!


उनसे बात हम कैसे कर लें,

जो ख्यालों में भी दूर तक न आएं!


जो हमेशा दगा देते आ रहे,

उस पर यक़ीन हम कैसे कर जाएं!


कौन, कौन है जब सबलोग यही सोचते रह जाएं,

तब हम, हम हैं यही कैसे जताएं!


जब बुझ गयी हो आशा की बत्ती,

फिर क्या पुरुष और क्या उसकी शक्ति!


जब ढ़ह गयी हो विश्वास की छत्ती,

तो फ़िर कैसा रिश्ता औऱ कैसी आशक्ति!


इच्छाएं ही शांत रह रहीं जिनकी,

फिर क्या पूर्ति क्या अनापूर्ति!


सम्बन्ध हीं कर्कश हों जिनके,

फ़िर क्या समझाना और क्या आपत्ति!


जिसको डर ही नही किसी गुमराही का,

फिर क्या रास्ता और क्या विपत्ति!

और अंत में.....


जब भगवान ही निकले दोषपूर्ण,

फिर क्या भक्त और कैसी भक्ति!

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2. 

विषय:- वीर का चरित्र


*वीर-चरित्र*


एक सवाल आया है, सब हैं मौन,

भाई यह तो बताओ, वीर है कौन?


है जानने की तीव्र अभिलाषा,

क्या निश्चित है,वीर की परिभाषा!


वीरों को सबने अपनी तरह से बताया,

निलय ने भी अपना मत जताया!


जानना है, की क्या है वीर नामक हस्ती, 

विद्वानों के पन्नों की शोभा मात्र वीर लिख देने से बढ़ती!


कहे जो आराम हराम है, 

सावधान है वो फ़िर विश्राम है!


वीर पूनम जैसा बढ़ता है, 

दुश्मन पर वो चढ़ता है!


कारखानों में नही जन्मा, नाहीं वहां पलता,

उदित सूर्य है वो, कभी नहीं ढलता!


रक्षक वीर प्रचण्डता की मिसाल है,

दुश्मन उसके आगे बेहाल है!


गम्भीर इतना कि करे निहाल,

चंचल इतना की शत्रु-खेमे में बवाल!


शिक्षक वीर समाज का सुसज्जित हाथ है,

बच्चों का विकास उन्हीं के साथ है!


विद्वान वीर प्रगति का पथ-निर्धारक है,

उसकी वाणी मात्र समाज उद्धारक है!


विचारक वीर सामाजिक मुद्दों का अकेला विलय है,

सवालों के उत्तर समाहित करता निलय(कक्ष) है!


नैतिक वीर संस्कारों का विशालकाय आलय है,

मानो मंदिर सा, स्वयँ चलता-फ़िरता विद्यालय है!


मनोवैज्ञानिक वीर समझता-समझाता विचारों

का प्रयोगात्मक चिंतन है,

अमृत की आस में, अपना अलग ही सागर मंथन है!


 कर्तव्यनिष्ठ वीर कर्म की महत्ता समझाता अली है,

कर्म के आगे भाग्य की भी नहीं चली है!


वस्तुतः मनोवैज्ञानिकता में या विषयगत 

वीरों के भिन्न-भिन्न होते प्रकार,

यो- यो कहता वही वीर जो, सबके साथ 

कर्तव्यनिष्ठता से करे सामूहिक सपने साकार.....

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क्रम सँख्या 3
विषय:- कर्म की प्रधानता
                             
       *शाश्वत कर्मावलम्बन* 

जो सूर्य उदित हुआ है, वो अवश्य ही है ढ़लता,

जो विचारशून्य हैं उनका नही पता, विद्वानों के
मन मे विचार अवश्य है पलता!

लक्ष्य केवल वही पाते हैं, जिनके विचारों में है अटलता!

जो घर से निकलते ही नही, उन्हें कुछ भी नही मिलता!

जो क्रांतिकारी होते हैं, आग उनके हृदय में जलता!

बुज़दिलों के विचार हैं चंचल, उनका विचार बार-बार फिसलता!

जिनका विद्या से कोई नाता नही, द्वेष उन्ही में पलता,

विद्वान हमेशा होने चाहिए विनम्र, दिखती है उनकी शालीनता!

भगवान है वो जिसकी मर्ज़ी के बिना, कोई पत्ता नही हिलता!

फिर कर्म करने का अभिप्राय है क्या,
कर्म का फ़ल कैसे है मिलता!

बिना कर्म के क्या मिले, जो मिला है

असर है दोनों का मिलता-जुलता!

जहाँ कर्म हो वहाँ कुछ न कुछ जरूर मिलता,
भाग्य का केवल सहारा पाकर व्यक्ति कभी हाथ पर हाथ मलता!


मनोविज्ञान भी देखता है, की सिग्मा का मान ऋणात्मक क्यों निकलता!

जहाँ द्वेष हो वहां जरूर मुरझाहट है, 
जहां प्रेम है वहां शांति का सुमन जरूर है खिलता!

अपनों के साथ समय का पता नही चलता,
परन्तु समय के साथ अपनों का पता जरूर चलता


*संक्षिप्त परिचय*
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नाम :- निलय कुमार

मूल नाम :- निलय कुमार गुप्ता

जन्म तिथि :- 25/12/1994

जन्म स्थान :- मझुआ प्रेमराज सरसी

माता का नाम :- पुष्पलता गुप्ता

पिता का नाम :- रामनाथ गुप्ता

शैक्षणिक योग्यता :- स्नातक(प्रतिष्ठा) मनोविज्ञान

लेखन विधा :- कविता/अशआर/नज़्म/निबंध/कहानी आदि
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