संदेश

रचनाएँ

Life process class 10th some important questions and answers.

What is yeast? A substance used for making bread rises and for making beer, wine etc.  Types of yeast - i) Baker's yeast ii) Nutritional yeast iii) Brewer's yeast iv) Distiller's yeast ➡️Twenty million yeast = 1gm yeast powder ➡️It is also known as suger eating fungus.  ➡️It's scientific name is Saccharomy Cerevisiae. ➡️It is also known as - catalyst, fungus, rising, agent, fermenter, leavening. What is fermentation?  Fermentation is a process in which a substance breaks down into a simpler substance.  ➡️Macroorganisms like yeast and bacteria usually play a role in the fermentation process, creating beer, wine, bread, and other food. What is catalyst (उत्प्रेरक)?  A substance which changes the rate of a reaction without itself undergoing (के दौर से गुजरना ) any permanent chemical change.  ➡️Types of Heterotrophic Nutrition i) saprotrophic nutrition ii) parasitic nutrition iii) holozonic nutrition What is saprotrophic or saprophytic nutrition?  In this nutrition an organ

Gender questions paper

  Gender Test- 20 marks Date-........................ Q. No.(01) Direction : Look at the words and answer the questions given below - [ This, That, she, Me, You, What, Our, His, Us, Who, They, he, Yourself, I, It, Her, Them, Her, Everybody, Each, Him, Either, Anyone, Both, Nothing, which, itself. ] 1) Pick out the pronouns of masculine gender from the box. 2) Pick out the pronouns of feminine gender from the box. 3) Pick out the pronouns of common gender from the box. 4) Pick out the pronouns used for all genders from the box. Q No.( 02) Define it with suitable examples :- a) Neuter Gender b) Common Gender c) feminine Gender Q No. (03) Direction : Look at the box and answer the questions given below - [teacher, ciw, bitch, doctor, king, stone, driver, queen, widow, dog, enemy, hen, hostess, tea, poet, friend, prince, princess, master, mistress, jew, goddess, tigress, auther, lioness, landlord, class, she-goat, chairman, honesty, child, stepson, thief, mother, student, m

Motivational poem //Motivational kavita in Hindi

चित्र
 बदल दे तकदीर   -------------------- उम्मीद की किरण से, बाँध दे शमा को। मजबूत इरादों से, लांघ दे आसमां को।। देख तेरी मंजिल, तेरी राह देख रही है। आज तू कर फ़तह, खुद के अरमां को। वक्त है तुम्हारा, वक्त तुम्हीं से बदलेगा।  साध दे लक्ष्य को, पत्थर भी पिघलेगा।  थामकर चलता चल, मन की डोर को।  इस माया नगरी में,तेरा मन भी मचलेगा। यकीन रख खुद पर, तू खुद का साथी है।  तू तम को हरने वाला, ज्योत की बाती है।  मत खो हौसला को, एक छोटी  हार से।  हर हार के बाद, जीत की बारी आती है।।  जो अडिग रहता है, हर मुसीबत में यहाँ।  एक दिन उसी के पीछे, चलती है कारवाँ।  बनकर असि चीरता जा, तू हर तूफां को। अगर बदलना है कुछ,बदल दे तकदीर को। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 30/08/20 समाँ- समय, वक्त, मौसम, ऋतु शमा- दीया, विडियो देखने के लिए क्लिक करें - 

रश्मिरथी सर्ग प्रथम //रामधारी सिंह दिनकर रश्मिरथी सर्ग प्रथम

चित्र
  रश्मिरथी सर्ग प्रथम   द्वन्द युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा। अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा। कृपाचार्य ने कहा - सुनो हे वीर युवक अनजान। भरत वंश अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान। क्षत्रिय है यह राजपुत्र है यों ही नहीं लड़ेगा। जिस तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा? अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन। नाम धाम कुछ कहो,बताओ कि तुम जाति हो कौन? जाति! हाय री जाति! कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला।  कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला।  जाति - जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषाण्ड।  मैं क्या जानू जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदण्ड।  ऊपर सिर पर कनक छत्र, भीतर काले के काले।  शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछने वाले।  सूतपुत्र हूँ मैं, लेकिन, थे पिता पार्थ के कौन?  सूतपुत्र हूँ मैं, लेकिन, थे पिता पार्थ के कौन?  मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो।  पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।  अधम जातियों से थर थर काँपते तुम्हारे प्राण । छल से माँग लिया करते हो अँगूठे का दान।  पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो मेरे भुजबल से।  रवि समाज दीपित ललाट से, और कवज कुण्डल से।  पढो उस

किसान आन्दोलन पर हुए दंगा पर कविता

चित्र
  आवाह्न उठो ये वतन वालों, वतन को बचाने।। सुलग रही है आग, घर  को  जलाने।। बीज ये कैसा? ? हम ने है बोया।। नफ़रत के फूलों से, है माला पिरोया।। धर्म मजहब में ये, है कैसा फसाना।। इक दूजे़ से क्यों??  हम हुए बेगाना ।।  यूँही नहीं हम ने,  पायी है आजादी।  खोये लाखों सपूतों,  तब रूकी बर्बादी।।  भूल गए हैं हम वो,  इक माँ का टुकड़ा।  था खून से लथपथ,  जब दोनों का चेहरा।  आओं साथ मिलकर,  हम होली ईद मनाएं।  प्रेम  का  सुमन हम,  वतन  में  खिलाएं।।  कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार  विडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें।  ➡️माँ पर कविता पढें -  यहां क्लिक करें

खंडहर पर कविता

चित्र
  चित्र अभिव्यक्ति  गीत आ गए तुम सघन वन में।  बिछ गए बस्ती सघन में । धधकती धरती गगन में।  महकती पुरवाई है । नफरतों को तुम मिटा दो,  अब कली मुस्काई है । छा गई दिलो में घन है । झूलसते ये मन व तन है ‌ नाग फनियों की गली है । पग पग करे ये जतन है।  घर गली और गांँव सारे ,  जो पतझड़ बिछ‌ आई है । नफरतों को तुम मिटा दो , अब कली मुस्काई है ।‌ दीवारे देखो ढहती ,  जाने क्या बातें कहती। ‌ फसल जहांँ थी हंँसती । क्यों अनल है पिरोती। चंदन की सोंधी खुशबू,  ले तू जो मुस्काई है । नफरतों को तुम मिटा दो, अब कली मुस्काई हैं ।‌ रचनाकार  चंद्रकिरणशर्मा भाटापारा ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ दिनाँक - 18/01/2021 विषय - *चित्रचिन्तन* विधा - राधेश्यामी छंद गीत (16 - 16) ********************************* कंकड़ पत्थर जोड़ बनाया ,         आलीशान महल सुहावना । घर बसेरा न रहा अभी वह ,          एक खंडहर हुआ पुराना ।। पहरेदारी करता ताला ,       रक्षक बन कर खड़ा हुआ है । जीर्ण हुई दीवारें घर की ,        फिर भी वह तो अड़ा हुआ है । निष्ठावान मनुज से ज्यादा ,             आता है कर्तव्य निभाना । घर बसेरा न रहा अभी वह ,          

खंडहर पर कविता

चित्र
चित्र आधारित   **************************** कल तक थे जो गुरबत में, देखो आज सोए हैं तुरबत में, गुमान किस बात का है बंदे, राजा महाराजा जाते उसी रास्ते।  कितना भी पा ले जीवन में कोई,  अंत में तो जाना है चार कंधे। कहती है तुरबत बड़ी देर कर दी, कहां खोए थे तुम ने तो हद कर दी, उस कीमत  के लिए दौड़े इतना, जिसकी अदायिगी तुमने मर कर दी। ****************************** सुखमिला अग्रवाल  स्वरचित मौलिक  मुंबई ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ खंडहर हूँ आज मैं खंडहर हूँ महज एक खंडहर किंतु कभी था विशाल प्रासाद चप्पा था मेरा आबाद गाता था अपनी  गौरव गरिमा फैली थी मेरी कीर्ति महिमा आज रोता हूँ बेबस हूँ महज एक खंडहर इन टूटी दीवारों की बानी लगती कुछ जानी पहचानी कल जहाँ सुरभि बिखरती थी पायल की छनक भरती थी आज सन्नाटा छाता है रात मेंउल्लू गीत गाता है   अकेला हूँ जर जर हूँ हाँ मैं खंडहर हूँ मंजुल रायपुर छत्तीसगढ़ ***************************  *मंजुल जी* ************************** * खंडहर * महलों में रहने वाले अब तो हुआ पुराना। ऊँचे किलों का अब तो चला गया जमाना। पत्थर के घर थे जब तो कैद में थी बुलबुल। आजाद आसमां पर अब

गीत

चित्र
  विधा------ कुंडलियाँ *विषय----- गीत* मधुरिम गीतों से सदा , घुलता मन माधुर्य । सात सुरों की धुन सजे , बजे सुसंगत तुर्य ।। बजे सुसंगत तुर्य , कर्ण प्रिय अति मनभावन । गीत संगीत साज , करे जीवन को पावन ।। सुनो "धरा" की बात , लगे मत सरगम कृत्रिम । मोहे हृदय सुतान , रागिनी छेड़े मधुरिम ।। ***** कलकल नदिया धार सी , बहे गीत संगीत । मन को आनंदित करे , जैसे हो मनमीत ।। जैसे हो मनमीत , प्रेम धुन सदा बजाये । बजता घुँघरु पाँव , नृत्य कर मन हरषाये ।। करे "धरा" स्वीकार , निरंतर बहता अविरल । रसमय मोहक गीत , बहे नद सम नित कलकल।। **** रचनाकार   *धरा* *रायगढ़* ➡️अन्य रचनाएँ पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

Letter

Hindi poem related on vegetable of 12 lines

I want some poetic lines for a 30th bday

चित्र
 जन्म दिन   जन्म दिवस हो पावन पुनीत तेरा। भर दूँ मैं खुशियाँ, बीन दूँ अंधेरा।। चुन काटें पग तल सुमन बिछा दूँ। जन्मों   जन्म अर्पित है जीवन मेरा। तेरी हर दुःख को  अपना बना लूँ। तेरे  नाम  की  मैं  मांग  सजा  लूँ। फैले यश चहुँ रश्मि सम तुम्हारा । मैं तेरी स्वीटी तू है स्वीटहार्ट मेरा।। कुन्दन कुंज पूर्णिया, बिहार  6201665486  ......................................... 2. जीवन की बगिया सजी हो,खुशियों और बहारों से।। मैं अर्पित कर दूँ खुद को,बीन लाऊँ खुशियां तारों से।।  ..............................................................   तुम मेरे लबों का मुस्कान ख्वाबों का पिटारा हो। मेरे दिल की धड़कन मेरी आँखों का तारा हो।। ............................................................... तुम्हारे संग बिताया हर लम्हा रंगीन बन गया। तुम्हें पा कर मेरा ये जीवन संगीत बन गया।। ......................................................... मैं क्या दूँ तुम्हें यह जीवन ही तुम्हारा है।  सच कहूँ तो तू जग में सबसे प्यारा है।। माँ पर कविता रचनाएँ पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें। माँ पर कविता

कवयित्री मुक्ता सिंह //कविता

चित्र
*संक्षिप्त परिचय* -------------------------- नाम :-श्रीमती मुक्ता सिंह मूल नाम :-श्रीमती मुक्ता सिंह जन्म तिथि :-4/1/1976 जन्म स्थान :-पलामू माता का नाम :-श्रीमती विमला सिंह पिता का नाम :-स्वर्गीय श्री ललन सिंह पति का नाम :- युवराज गुलाब प्रताप सिंह शैक्षणिक योग्यता :-मास्टर डिग्री इन हिंदी, मास कॉम nd जर्नलिज्म ****************************************** उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं -  1.     *सब साजिशें हैं* सब साजिशें हैं वो बारिश की बूंदे वो मिट्टी की सोंधी सी खुशबू वो तेरी यादों की बारातें। सब साजिशें हैं मुझे यूँ तड़पाने की, तेरे दूर जाने की। सभी जिम्मेवारियां निभाते हो ईमानदारी से, सिर्फ मुझे ही भुल जाते हो इन बंधनों में । सब साजिशें हैं तेरे यादों की सौगाते, जो तुम दे जाते हो हंसते-हंसते और मैं थाम लेती हूं मुस्करा के । दिल मे कसक सी रह जाती है  आसओं के काश पे अटक के । सब साजिशें हैं इन विरह के मौसम के । कुछ तुम छोड़ जाते हो अनजान बनके कुछ मै नही पकड़ पाती शरमा के  ये शर्मो-हया के पर्दे, ये उठ कर झुकी पलकें। सब साजिशें हैं तेरे जाने का दर्द और मेरे विरह के । जाते जाते भी मुड़कर तेरा

लक्ष्मी कुमारी //माँ पर कविता

चित्र
माँ मांग लूँ यह मन्नत की, फिर यही जहाँ मिले। फिर यही गोद मिले, लक्ष्मी कुमारी  पूर्णिया, बिहार  शिक्षिका  फिर यही प्यारी माँ मिले । दुनिया ने जब जब रूलाया तब तब आपने ही हँसना सिखाया माँ हर पल तेरी आंचल की छाया मिले दुनिया ने जब जब जख्म़ दिए माँ ने ही ममता का मरहम लगाया है। माँ तेरी आँचल में जन्नत मिले माँ ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया है गिरकर उठना, उठकर दौड़ना सिखाया । हँसना सिखाया जीना सिखाया माँ आपने मुझे मजबूत बनाया आपने पहचान बनाना सिखाया जब भी परेशान हुई दुख के थपेड़ों से शुकून की प्यारी थपकी माँ से मिली माँ तेरे जैसा इस जहां में कोई नहीं तू है तो जन्नत है तू है तो रहमत है माँ मैं तेरी ही परछाई हूँ तेरी रहमत से दुनिया में आई हूँ मांग लूँ यह मन्नत की। .................................................  अन्य रचनाएँ पढने के लिए लिंक पर क्लिक करें ➡️माँ पर कविता सुनने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें।  किसान आन्दोलन पर कविता पढें -  यहां क्लिक करें

आँचल शरण जी की रचनाएँ

चित्र
1- ---🙏 विनती 🙏---- देना शक्ति हमें इतनी विधाता,  भूल हो न कभी हमसे जरा सा।  हम सब है नादाँ पर संतान तुम्हारे,  तुम हो सृजनहार, पालन हारे।  गलत राह पर, न चलाना हमें तुम,  बस इतनी कामना है प्रभु तुम से हमारे।  जितनी भी जियूँ ये जिंदगी मैं,  सर पे हाथ रहे सलामत तुम्हारे।  जाति- मजहब की कोई दीवार हो न,  हर तरफ मुस्कुराता सृजन हो तुम्हारा। इस जिंदगी में लाखों बेबसी है अपनों को भी अब, न पहचानता कोई है।  देना शक्ति ....  हर तरफ जुल्म बढ़ता ही जा रहा है  बिखर रहा है सारा सृजन तुम्हारा।  अब सारा जहाँ सहम सा गया है,  देख कर प्रभु रौद्र रूप तुम्हारा।  बिखर रहा जहाँ, उजड़ रही धरा है,  हर जीव विनती कर रहा है तुम्हारा। देना शक्ति हमें इतनी विधाता,  भूल होना कभी हमसे जरा सा।  सारी उलझन को तु सुलझा कर, कर दे कंचन जहाँ को हमारा। ज्ञान का दीप जलता रहे यहाँ पर,  खिले चहुँ ओर ज्ञान का उजियारा। देना शक्ति हमेंं इतनी विधाता,  भूल हो न कभी हमसे जरा सा।  ....................................................  2.    प्यारी बिटिया  ओ नन्हीं सी बिटिया रानी प्यारी सी मेरी गुड़िया रानी मुस्कान तेरी है प्यारी -प्

सुन्दर दोहे //रोज सुबह पढें

चित्र
 * साँची-सुरभि*           *पथिक* शीतल छाया वृक्ष की , देती है आराम । थके पथिक करते यहीं , क्षण भर को विश्राम ।। अनजानी सी राह है , कंटक से भरपूर । जरा संभल कर पाँव रख , पथिक न हो मद चूर ।। पथिक उठाए क्यों चला , पाप गठरिया शीश । भक्ति ज्ञान मन प्रेम हो , तभी मिलेंगे ईश ।। पथरीली सी राह में , पथिक चला अनजान । पहन ज्ञान की पादुका , पंथ बने आसान ।। यह दुनिया पथ एक है , पथिक सभी इंसान । पाषाणी अनुराग में , पाता कष्ट महान ।। भाग दौड़ दिन भर रहा , हुआ पथिक थक चूर । रजनी की विश्रांति से , हुई थकावट दूर ।। मटका धारे शीश में , बलखाती सी नार । चंचल नयन कटार से , करे पथिक पर वार ।। पथिक चले हैं मार्ग पर , ले मंजिल की आस । सच्चे मन से जब करे , तब हो सफल प्रयास ।। पनघट पे प्यासा पथिक , पहुँचा पानी आस । पनिहारिन पूछे पता , कहाँ तुम्हारा वास ।। धरती नभ रवि शशि पवन , सभी पथिक सम जान । चले कर्म पथ नित्य ही , "साँची" सुन यह ज्ञान ।।   *साहू"साँची"*     भाटापारा (छत्तीसगढ़ ) कवि निलय की कविताएँ प्रातः पर सुन्दर कविता

चीख़ता वृक्ष //कुन्दन कुंज

चित्र
 चीखता वृक्ष   🌴🌴🌴🌴🌴 अभी मन में उमंग स्फुटित ही हुई थी , कि तभी उधर से इक चीख सुनाई दी।। बचाओं- बचाओं कोई मेरी मदद करो, मेरा अंतस्तल तुरंत विचलित हो उठा।। मन में हजारों सवाल उमड़ने लगे थे , कौन है?कौन चीख़ रहा है बार- बार?  मन प्रकाश के वेग से तेज चल रहा था, परंतु  मेरे  पाँव  गतिहीन  हो गये थे ।। मैंनें अपने चारों तरफ दबी आंँखों से देखा,  किंतु दूर - दूर तक कोई भी नहीं दिखा।।  इस बार मेरा शक और भी गहरा हो गया,  मानों कोई अदृश्य शक्ति मुझे बुला रही हो। ज्योंही मैंने गति हीन पांँव को गति दी,  इस बार एक नहीं सैकड़ों में सुनाई दी।  मानों जैसे पांँव तले जमीन खिसक गई,  मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया था।  और मैं वहीं मूर्च्छित हो कर गिर पड़ा,  जब मेरी आँखें खुली मैं दंग रह गया।  मैं किसी  अस्पताल  के बेड  पर नहीं था,  बल्कि कटे हुए वृक्षों के तने पर लेटा था।।  मुझे नहीं पता किसने मुझे वहाँ लिटाया,  लेकिन हजारों कटे हुए वृक्षों को देख ।।  मेरी आंँखों से अश्रु अनवरत बह रहा था,  इक बेगुनाह अपने दर्द को कह रहा था।  इस  बार मुझे  फिर  से इक  चीख सुनाई दी,  जो बाहर से नहीं बल्कि मेरे अंदर

कवि निलय कुमार //कविता

चित्र
1. विषय:- निराशा की मनःस्थिति कविता:- *किंकर्तव्यविमूढ़ हताश*  निराशाजनक उत्तरों से कभी, जगा नही क़रतीं आशाएं, आप कह दो भूल जाइए जनाब, हम कैसे भुलाएँ! जब साध्य ही ना हुआ उपपन्न,  तो उत्तर तक हम कैसे पहुंच पाएं! जब कोई विमा ही मालूम न हो, तो आकृति हम, यूँही कैसे बनाएं! जब रास्ता दिखे ही ना आगे, तो कदम हम कैसे बढ़ाएं! जब ऊंचाई पर कुछ मिलने की थाह ही नही, तो कैसे इतनी सीढ़ियां चढ़ जाएँ! उनसे बात हम कैसे कर लें, जो ख्यालों में भी दूर तक न आएं! जो हमेशा दगा देते आ रहे, उस पर यक़ीन हम कैसे कर जाएं! कौन, कौन है जब सबलोग यही सोचते रह जाएं, तब हम, हम हैं यही कैसे जताएं! जब बुझ गयी हो आशा की बत्ती, फिर क्या पुरुष और क्या उसकी शक्ति! जब ढ़ह गयी हो विश्वास की छत्ती, तो फ़िर कैसा रिश्ता औऱ कैसी आशक्ति! इच्छाएं ही शांत रह रहीं जिनकी, फिर क्या पूर्ति क्या अनापूर्ति! सम्बन्ध हीं कर्कश हों जिनके, फ़िर क्या समझाना और क्या आपत्ति! जिसको डर ही नही किसी गुमराही का, फिर क्या रास्ता और क्या विपत्ति! और अंत में..... जब भगवान ही निकले दोषपूर्ण, फिर क्या भक्त और कैसी भक्ति! ............. ............................. 2.

सुबह पर कविता //प्रातः काल पर सुन्दर कविता

चित्र
मनहर धनाक्षरी   भोर के किरण संग, फूल खिले लाल रंग । नववर्ष की स्वागत है,छवि अभिराम है।। ओस भी चमक रही, फूल से लिपट रही। बिदाई की बेला है, दिवाकर प्रणाम है।। रक्ताभ है आसमान,पंछी भरते उड़ान। धरती हरित दिखे, शोभा ललाम है।। अश्वरथी आगमन, स्वर्ण लगे सिंहासन । धूप छाँव ऐसे लगे,जैसे राम श्याम है।। .................................................  केवरा यदु "मीरा " राजिम प्रातः काल पर सुन्दर कविता  नव वर्ष पर कविता रक्षाबंधन पर कविता पढें सुन्दर गीत पढें हमारा देश भारत पर सुन्दर कविता पढें

रक्षाबंधन

चित्र
कवयित्री सरिता सिंघई की रचनाएँ पढें "रक्षाबंधन में बहन की पुकार"   रक्षाबंधन है यह अटूट एवं पवित्र  भाई बहनों के रिश्तो का त्यौहार,  बहन अपने भाई की कलाई पर  बांधती है उम्मीद भरा प्यार , सर पर तिलक लगाकर करती है आरती , और उम्मीद भरे शब्दों से कहती  मेरे भैया करूं आज मैं तुझसे यह विनती , यह मेरी नहीं सभी बहनों की है हर भाई से विनती , इस रक्षा बंधन हमें यह उपहार भैया दे देना ।। भैया हमारे समाज में यह क्यों हो रहा है ,  शुरू होती है घर से हमारी यह कहानी, जन्म लिए जब एक  कोख से तो यह भेदभाव क्यों हो रहा है, लड़की होने पर हर बहना का है दिल क्यों रो रहा हैं ,  जब सब कहते घर से ना निकल तू धन है पराया ,  चल रहा समाज में किसने यह रीत बनाया,  मुझको सब क्यों कहते तू हैं पराया ,  मैं भी तेरे जैसा इस घर का नाज बन सकती , मौका मुझको भी एक दे दे , पापा के सरताज बन सकती, भैया मुझको भी यह हक दिला दें, हर बहना तूझसे आज करे यह विनती,  इस रक्षा बंधन हमें यह उपहार भैया दे देना ।। भैया जब हम आगे बढ़ना चाहते तो यह  समाज हमें क्यूँ करते हैं पीछे,  हर मोड़ हर गली हर चौराहे पर क्यूं लोग  हमें देखते बुर